हम देखते हैं कि नंदी जी शिवलिंग के बिल्कुल विपरीत बैठे रहते हैं, आखिर क्यों?
क्यों नंदी महाराज चिर काल से शिवलिंग के विपरीत स्थापित है, क्या कारण है या नंदी अपने भगवान के बाहर आने, कहने या कुछ करने की प्रतीक्षा कर रहे है।
नंदी हमारी वैदिक पद्धिती के सबसे बड़े गुणों में से एक का प्रतीक है। वे न तो प्रतीक्षा कर रहे है न कुछ कहने या सुनने का इन्तेज़ार कर रहे है, वह तो बस बैठे है ध्यान में शांति से स्थिर और जो व्यक्ति केवल बैठकर प्रतीक्षा करना समझता है, वह स्वाभाविक रूप से ध्यान करने वाला होता है। वह कुछ भी उम्मीद नहीं कर रहा है।
प्रतीक्षा के गुण अर्थात प्रति इक्छा, अपने इष्ट के प्रति इक्छा, ग्रहणशील होने से नंदी को भगवान शिव के सबसे निकट बना दिया है।
मंदिर में प्रवेश करने से पहले, आपके पास नंदी का गुण होना चाहिए, जो कि बस बैठना, ग्रहणशील होना और प्रतीक्षा करना है। ऐसा करने से आप उस भौतिकवादी भावना को पीछे छोड़ देंगे जिसे आप अपने साथ रखते हैं।
प्रार्थना करना हमें परमेश्वर से और कभी-कभी स्वयं से बात करने में मदद करने का एक तरीका है। लेकिन जब आप वहां जाते हैं और कुछ ना करते हुए बैठे, तो आप एक प्रकार के ध्यान में होते हैं, जिसमें आप प्रभु की बात सुनने को तैयार होते हैं । तो बस जाओ और वहाँ बैठो जैसे मैं यहाँ करता हूँ, नंदी कहते हैं।
सबसे शक्तिशाली नंदी महाराज में से एक होने के नाते अब तक का सबसे विनम्र और निस्वार्थ व्यक्ति है। किसी की शक्ति सिर्फ शरीर में नहीं, बल्कि उनके दिमाग में रहती है। जो अपने कार्यों, शब्दों और व्यवहार को नियंत्रित करना जानता है, वह किसी भी चीज़ पर और किसी पर भी विजय प्राप्त कर सकता है।
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