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प्रचीन सिद्धवट उज्जैन ,पितृश्राद्ध, कर्मकांड, मोक्षकर्म, पिंडदान श्राद्ध

भगवन श्री महाकाल की नगरी अवंतिका क्षेत्र, उज्जैन में स्तिथ है सिद्धवट स्थान तीर्थ उत्तर कर्म और अंत्योष्टि कर्म के लिया प्रसिद्ध सिद्धवट तीर्थ समूचे भारत वर्षा में एक ही स्थली है , प्रयाग (इलाहाबाद) में अक्षयवट, मथुरा-वृंदावन में वंशीवट, गया में गयावट जिसे बौधवट भी कहा जाता है और यहाँ उज्जैन में पवित्र सिद्धवट हैं।


मृत्यु के बाद दाह संस्कार और अस्थि श्राद्ध के लिया प्रसिद्ध सिद्धवट स्थान तीर्थ, वर्तमान में इस सिद्धवट को कर्मकांड, मोक्षकर्म, पिंडदान, कालसर्प दोष पूजा एवं अंत्येष्टि के लिए प्रमुख स्थान माना जाता है।


दशगात्र संस्कार,अग्नि से मृतक शरीर भस्म हो जाने के बाद पिंड शरीर को प्राप्ति होती है,एकाहादशा कर्म भगवन विष्णु के सानिध्य में जीव को प्रेतत्व से मुक्ति हेतु श्राद्ध कर्म किया जाता है ,

सपिण्डन श्राद्ध,इस कर्म के करने से जीव अपने पूर्वज पितरों की पंक्ति में प्रवेश कर लेता है एवं प्रेत योनि से मुक्त होकर पूर्वज पितरों की तरह देव और पूजनीय हो जाता है ,


शैया दान, गौ दान, ब्राह्मण ब्रह्मचारी दान, भगवन सिद्धनाथ का पूजन, ब्राह्मण भोज आदि किया जाता है,


ऊपर किए गए कर्म-काण्ड और संस्कार के द्वारा जीव को यम मार्ग की यात्रा के समय आत्म तृप्ती होती है और मोक्ष के प्राप्ति होती है ,


यहाँ तीन तरह की सिद्धि होती है संतति, संपत्ति और सद्‍गति। तीनों की प्राप्ति के लिए यहाँ पूजन किया जाता है। सद्‍गति अर्थात पितरों के लिए अनुष्ठान किया जाता है। संपत्ति अर्थात लक्ष्मी कार्य के लिए वृक्ष पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और संतति अर्थात पुत्र की प्राप्ति के लिए उल्टा सातिया (स्वस्विक) बनाया जाता है। यह वृक्ष तीनों प्रकार की सिद्धि देता है इसीलिए इसे सिद्धवट कहा जाता है।


यहाँ पर नागबलि, नारायण बलि-विधान का विशेष महत्व है। यहाँ पर कालसर्प शांति का विशेष महत्व है, इसीलिए कालसर्प दोष की भी पूजा होती है।


पौराणिक कथा:

स्कंद पुराण अनुसार पार्वती माता द्वारा लगाए गए इस वट की शिव के रूप में पूजा होती है। पार्वती के पुत्र कार्तिक स्वामी को यहीं पर सेनापति नियुक्त किया गया था। यहीं उन्होंने तारकासुर का वध किया था। संसार में केवल चार ही पवित्र वट वृक्ष हैं।


जय श्री महाकाल


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