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ज़रूर पढ़े -भारत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति

भारत में गुरुकुल शिक्षा पद्धति की बहुत लंबी परंपरा रही है। गुरुकुल में विद्यार्थी विद्या अध्ययन करते थे। तपोस्थली में सभा, सम्मेलन और प्रवचन होते थे जबकि परिषद में विशेषज्ञों द्वारा शिक्षा दी जाती थी।

प्राचीनकाल में धौम्य, च्यवन ऋषि, द्रोणाचार्य, सांदीपनि, वशिष्ठ, विश्वामित्र, वाल्मीकि, गौतम, भारद्वाज आदि ऋषियों के आश्रम प्रसिद्ध रहे। बौद्धकाल में बुद्ध, महावीर और शंकराचार्य की परंपरा से जुड़े गुरुकुल जगप्रसिद्ध थे, जहां विश्वभर से मुमुक्षु ज्ञान प्राप्त करने आते थे और जहां गणित, ज्योतिष, खगोल, विज्ञान, भौतिक आदि सभी तरह की शिक्षा दी जाती थी।

प्रत्येक गुरुकुल अपनी विशेषता के लिए प्रसिद्ध था। कोई धनुर्विद्या सिखाने में कुशल था तो कोई वैदिक ज्ञान देने में। कोई अस्त्र-शस्त्र सिखाने में तो कोई ज्योतिष और खगोल विज्ञान में दक्ष था। जैसा कि आजकल होता है कि इंजीनियरिंग कॉलेज अलग और कॉमर्स कॉलेज अलग।

विश्वामित्र का आश्रम : राम और लक्ष्मण ने ऋषि विश्वामित्र के यहां रहकर शिक्षा प्राप्त की थी। विश्वामित्र गायत्री के बहुत बड़े उपासक थे। माना जाता है कि महर्षि विश्वामित्र का आश्रम बक्सर (बिहार) में स्थित था। इस स्थान को गंगा-सरयू संगम के निकट बताया गया है। विश्वामित्र के आश्रम को 'सिद्धाश्रम' भी कहा जाता था।

रामायण के अनुसार राम और लक्ष्मण ने विश्वामित्र के आश्रम में रहकर ही ताड़का, सुबाहु आदि राक्षसों को मारा था। हालांकि यदि हम उनकी तपोभूमि की बात करें तो वह हरिद्वार में थी, जहां आज शांति निकेतन बना है।

विश्वामित्र वैदिक काल के विख्यात ऋषि थे। उनके ही काल में ऋषि वशिष्ठ थे , अड़ी अर्थात प्रतिद्वंद्विता। विश्वामित्र के जीवन के प्रसंगों में मेनका और त्रिशंकु का प्रसंग भी बड़ा ही महत्वपूर्ण है। प्रजापति के पुत्र कुश, कुश के पुत्र कुशनाभ और कुशनाभ के पुत्र राजा गाधि थे। विश्वामित्रजी उन्हीं गाधि के पुत्र थे।


भारद्वाज मुनि का आश्रम : वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का अति उच्च स्थान है। भारद्वाज मुनि का आश्रम प्रयाग में था। ये विमानशास्त्र में प्रवीण थे। इसके अलावा यहां वैदिक ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती थी। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं।

रामायण के एक प्रसंग के अनुसार उनका आश्रम गंगा यमुना के संगम प्रयाग में था। राम, लक्ष्मण और सीता गंगा पार करने के उपरांत चलते-चलते गंगा-यमुना के संगम स्थल पर श्री भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे थे।

ऋषि भारद्वाज के 10 पुत्र थे। सभी पुत्र ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा माने गए हैं। उनकी 2 पुत्रियां भी थीं जिसमें से एक का नाम 'रात्रि' था, वे रात्रि सूक्त रचयिता थीं। दूसरी का नाम कशिपा था। भारद्वाज के 10 पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र।

ऋषि भारद्वाज व्याकरण, धर्मशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञानशास्त्र आदि अनेक विषयों में पारंगत थे। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने इंद्र से व्याकरण और आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण कर आयुर्वेद संहिता लिखी। महाभारत के अनुसार भारद्वाज ने महर्षि भृगु से धर्मशास्त्र की शिक्षा ग्रहण कर 'भारद्वाज-स्मृति' की रचना की।

ऋषि भारद्वाज ने 'यंत्र-सर्वस्व' नामक वृहद ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमानशास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रंथ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।


भारद्वाज मुनि का आश्रम : वैदिक ऋषियों में भारद्वाज-ऋषि का अति उच्च स्थान है। भारद्वाज मुनि का आश्रम प्रयाग में था। ये विमानशास्त्र में प्रवीण थे। इसके अलावा यहां वैदिक ज्ञान की शिक्षा भी दी जाती थी। भारद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थीं।

रामायण के एक प्रसंग के अनुसार उनका आश्रम गंगा यमुना के संगम प्रयाग में था। राम, लक्ष्मण और सीता गंगा पार करने के उपरांत चलते-चलते गंगा-यमुना के संगम स्थल पर श्री भारद्वाज के आश्रम में पहुंचे थे।

ऋषि भारद्वाज के 10 पुत्र थे। सभी पुत्र ऋग्वेद के मंत्रदृष्टा माने गए हैं। उनकी 2 पुत्रियां भी थीं जिसमें से एक का नाम 'रात्रि' था, वे रात्रि सूक्त रचयिता थीं। दूसरी का नाम कशिपा था। भारद्वाज के 10 पुत्रों के नाम हैं- ऋजिष्वा, गर्ग, नर, पायु, वसु, शास, शिराम्बिठ, शुनहोत्र, सप्रथ और सुहोत्र।

ऋषि भारद्वाज व्याकरण, धर्मशास्त्र, शिक्षाशास्त्र, राजशास्त्र, अर्थशास्त्र, धनुर्वेद, आयुर्वेद और भौतिक विज्ञानशास्त्र आदि अनेक विषयों में पारंगत थे। चरक संहिता के अनुसार उन्होंने इंद्र से व्याकरण और आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण कर आयुर्वेद संहिता लिखी। महाभारत के अनुसार भारद्वाज ने महर्षि भृगु से धर्मशास्त्र की शिक्षा ग्रहण कर 'भारद्वाज-स्मृति' की रचना की।

ऋषि भारद्वाज ने 'यंत्र-सर्वस्व' नामक वृहद ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने 'विमानशास्त्र' के नाम से प्रकाशित कराया है। इस ग्रंथ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है।


कपिल मुनि : एक प्रसंग है कि जब राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उन्होंने अपने 60 हजार पुत्रों को उस घोड़े की सुरक्षा में नियुक्त किया। देवराज इंद्र ने उस घोड़े को छलपूर्वक चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया था ताकि कोई वहां नहीं जा सके।

राजा सगर के 60 हजार पुत्र उस घोड़े को ढूंढते-ढूंढते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो उन्हें लगा कि मुनि ने ही यज्ञ का घोड़ा चुराया है। यह सोचकर उन्होंने कपिल मुनि का अपमान कर दिया। ध्यानमग्न कपिल मुनि ने जैसे ही अपनी आंखें खोली, राजा सगर के 60 हजार पुत्र वहीं भस्म हो गए।

कपिल मुनि 'सांख्य दर्शन' के प्रवर्तक थे। इनकी माता का नाम देवहुती व पिता का नाम कर्दम था। कपिल ने माता को जो ज्ञान दिया, वही 'सांख्य दर्शन' कहलाया। महाभारत में ये सांख्य के वक्ता कहे गए हैं।

कपिलवस्तु, जहां बुद्ध पैदा हुए थे, कपिल के नाम पर बसा नगर था। सगर के पुत्र ने सागर के किनारे कपिल को देखा। बाद में वहीं गंगा का सागर के साथ संगम हुआ। इससे मालूम होता है कि कपिल का जन्मस्थान संभवत: कपिलवस्तु और तपस्या क्षेत्र गंगासागर था।

रामायण के अनुसार जल की खोज में थके-मांदे राम, सीता और लक्ष्मण कपिल की कुटिया में पहुंचे।

कण्व : माना जाता है कि इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया। कण्व वैदिक काल के ऋषि थे। इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन-पोषण हुआ था।

103 सूक्त वाले ऋग्वेद के 8वें मंडल के अधिकांश मंत्र महर्षि कण्व तथा उनके वंशजों तथा गोत्रजों द्वारा दृष्ट हैं। कुछ सूक्तों के अन्य भी द्रष्ट ऋषि हैं, किंतु 'प्राधान्येन व्यपदेशा भवन्ति' के अनुसार महर्षि कण्व अष्टम मंडल के द्रष्टा ऋषि कहे गए हैं। इनमें लौकिक ज्ञान-विज्ञान तथा अनिष्ट-निवारण संबंधी उपयोगी मंत्र हैं।

महाभारत के आदिपर्व में वर्णित है कि कण्व ऋषि के आश्रम में अनेक नैयायिक रहा करते थे, जो न्याय तत्वों के कार्यकारणभाव, कथा संबंधी स्थापना, आक्षेप और सिद्धांत आदि के ज्ञाता थे। न्याय दर्शन के रचयिता महर्षि गौतम थे।

सोनभद्र में जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर की दूरी पर कैमूर श्रृंखला के शीर्ष स्थल पर स्थित कण्व ऋषि की तपस्थली है, जो कंडाकोट नाम से जानी जाती है।


अत्रि : ऋग्वेद के पंचम मंडल के दृष्टा महर्षि अत्रि ब्रह्मा के पुत्र सोम के पिता और कर्दम प्रजापति व देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति थे। अत्रि ऋषि ने

अत्रि ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था। मान्यता है कि अत्रि-दंपति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरूप विष्णु के अंश से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा तथा शंकर के अंश से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्रि एवं देवी अनुसूया के पुत्र रूप में जन्मे। ऋषि अत्रि पर अश्विनीकुमारों की भी कृपा थी।


गौतम ऋषि का आश्रम : गौतम ऋषि न्याय दर्शन के प्रवर्तक थे। देवी अहिल्या उनकी पत्नी थी।

महर्षि गौतम बाण विद्या में अत्यंत निपुण थे। महर्षि गौतम न्यायशास्त्र के अतिरिक्त स्मृतिकार भी थे तथा उनका धनुर्वेद पर भी कोई ग्रंथ था, ऐसा विद्वानों का मत है। उनके पुत्र शतानंद निमि कुल के आचार्य थे।


शौनक : शौनक ने 10 हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया। वैदिक आचार्य और ऋषि, जो शुनक ऋषि के पुत