देवउठनी एकादशी दिवाली के पर्व के बाद आती है. इस एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि इस एकादशी की तिथि पर भगवान विष्णु जागृत होते हैं. यानि वे शयन काल को पूर्ण करते हैं और पुन: पृथ्वी की बागडोर अपने हाथों में ले लेते हैं.
हिंदू धर्म में सबसे शुभ और पुण्यदायी मानी जाने वाली एकादशी, कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष को मनाई जाती है। यह देवउठनी एकादशी 25 नवंबर, बुधवार को है, जिसे हरिप्रबोधिनी और देवोत्थान एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयन करते हैं, इस दिन से ही चातुर्मास आरंभ होते हैं. इस बार 1 जुलाई से चातुर्मास आरंभ हुए थे. कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान विष्णु के उठते ही चातुर्मास का समापन हो जाएगा.
पौराणिम मान्यता अनुसार देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में 4 माह के बाद जागते हैं. जब भगवान विष्णु पाताल लोक में विश्रमा करने के लिए चले जाते हैं तो सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है.
इस एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा के बाद उठते हैं इसलिए इसे देवोत्थान एकादशी कहा जाता है।
देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त:
इस वर्ष देवोत्थान एकादशी व्रत 25 नवंबर, बुधवार के दिन है।
हिंदू पंचांग के अनुसार 25 नवंबर को एकादशी तिथि दोपहर 2 बजकर 42 मिनट से लग जाएगी।
वहीं एकादशी तिथि का समापन 26 नवंबर को शाम 5 बजकर 10 मिनट पर समाप्त हो जाएगी।
देवउठनी एकादशी व्रत में क्या करें?:
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने दीपक अवश्य जलाना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन आपको सूर्योदय से पहले उठ जाना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के नाम का कीर्तन भी करना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए।
देवउठनी एकादशी के दिन किसी गरीब और गाय को भोजन अवश्य कराना चाहिए।
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