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क्या आपने ने कभी सोचा है के भोलेनाथ क्यों शांत और मौन रहते है

क्या आपने ने कभी सोचा है के भोलेनाथ क्यों शांत और मौन रहते है, मौन आत्मा चिंतन और एकाकी का रास्ता है जो आपको अपने आप को पहचाने और समझने की एक अटूट शक्ति देता है।

भारतीय संस्कृति में अनेकों प्रकार के व्रत हैं,परंतु मौन व्रत अपने आप में एक अनूठा व्रत है।मौन रहने से जीवन में सकारात्मक बदलाब आते हैं। मन के विकार दूर होते हैं,चित्त शांत रहता है जिस कारण स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

अगर आप मौन रहना सीखे तब आप समझेंगे के दो कर्ण (कान) हमे भगवन ने क्यों दिए है, ज्यादा श्रवण करे, समझे और कम वार्तालाप करे, हम समझने के लिए नहीं बोलने के लिया सुनते है।


आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी वाणी का शुद्ध और सरल होना अति आवश्यक है। मौन से वाणी शुद्ध और नियंत्रित होती है व यह हमारे सोचने-समझने की शक्ति को विकसित करता है इसलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बताया गया है।


ऋषि-मुनि या चिंतक मौन रहकर ही मनन-चिंतन करते हैं इससे उनकी मानसिक ऊर्जा बढ़ती है,मौन रहकर कार्य करने से ज्ञानेन्द्रियाँ व कामेन्द्रियाँ एकाग्र होती हैं और कार्य सुचारु रूप से संपन्न होता है। तभी तो पूजा-अनुष्ठानों में मौन रहकर कार्य किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार प्रातःकाल और सायंकाल मनुष्य को जितनी देर हो सके मौन अवश्य रखना चाहिए। ऐसा करने से मानसिक तनाव तो कम होता ही है साथ ही स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होता है एवं मन को शांति व मानसिक शक्ति प्राप्त होती है। 

जिन्हें मन को वश में रखना हो व अपने आप पर नियंत्रण साधना हो उन्हें नियमित रूप से कुछ समय के लिए मौन रहने का अभ्यास अवश्य करना चाहिए। मनोविज्ञानी भी एकाग्रता,स्मरण शक्ति बढ़ाने,मन को मजबूत बनाने एवं सकारात्मक सोच के लिए मौन रखने की सलाह देते हैं।दैनिक जीवन में भी कार्य करते समय बोलने और मौन रखने का अंतर समझा जा सकता है।जो व्यक्ति मौन रहते हैं उनकी बुद्धि अपेक्षाकृत अधिक स्थिर एवं संतुलित होती है,ऐसा व्यक्ति हानि-लाभ,हित-अहित के प्रसंगों पर भी बड़े धैर्यपूर्वक निर्णंय ले सकता है।


गणेशजी ने मौन रहकर किया लेखन:


महर्षि व्यास की एक कथा प्रसिद्द है जिसमें महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना कर लेने के पश्चात उन्होंने गणेश जी से लेखन कार्य पूरा न होने तक एक शब्द भी न बोलने का कारण पूछा।


उत्तर में गणेश जी ने कहा-''यदि मैं बीच-बीच में बोलता जाता तो आपका यह कार्य न केवल कठिन हो जाता अपितु भार बन जाता। देव, दानव और मानव जितने भी तनधारी जीव हैं सबकी प्राणशक्ति सीमित है। उसका पूर्णतम लाभ वही पा सकता है जो संयम से इसका उपयोग करता है। और संयम का प्रथम सोपान है-वाक् संयम। जो वाणी का संयम नहीं रखता उसके अनावश्यक शब्द उसकी प्राणशक्ति को सोख डालते हैं।इसलिए मैं मौन का उपासक हूँ।"

सप्ताह में एक बार कोशिश करे के एक घंटे का मौन व्रत रखे और देखिये आपकी कितनी चेतना जागृत होती है


संस्कार क्रिया से शरीर, मन और आत्मा मे समन्वय और चेतना होती है

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