काल कौन और क्या है, स्कन्दा पुराण के अनुसार, लोमशजी कहते हैं ब्रह्माजी ने जब सम्पूर्ण जगत की सृष्टि की, तब राशियों से कालचक्र उत्पन्न हुआ । उस कालचक्र में सब कार्यों की सिद्धि के लिये बारह राशियाँ और सत्ताईस नक्षत्र मुख्य हैं ।
इन बारह राशियों और सत्ताईस नक्षत्रों के साथ क्रीड़ा सम्पूर्ण करता हुआ कालचक्र सहित काल जगत को उत्पन्न करता है । ब्रह्माजी से लेकर कीटपर्यन्त सबको काल लिये ही उत्पन्न करता, वही पालन करता और वही संहार करता है । एकमात्र काल से ही यह सारा जगत् बँधा हुआ है ।
अकेला काल ही इस लोक में बलवान् है , दूसरा नहीं । अतः यह सब प्रपंच कालात्मक है । सबसे पहले काल हुआ। काल से स्वर्गलोक के अधिनायक उत्पन्न हुए । तदनन्तर लोकों की उत्पत्ति हुई ।
उसके बाद त्रुटि हुई।
त्रुटि से लव हुआ।
लव से क्षण हुआ।
क्षण से निमिष हुआ जो प्राणियों में निरन्तर देखा जाता है।
साठ निमिष का एक पल कहा जाता है।
साठ पलों की एक घड़ी होती है।
साठ घड़ी का एक दिन - रात होता है।
पंद्रह दिन - रात का एक पक्ष माना जाता है।
दो पक्षका एक मास और बारह महीनों का एक वर्ष होता है ।
काल को जानने की इच्छा रखनेवाले बुद्धिमान् पुरुषों को इन सब बातों का ज्ञान रखना चाहिये । प्रतिपदा से लेकर पूर्णमासी तक पक्ष पूरा होता है ।
उस दिन पक्ष पूर्ण होनेके कारण ही उसे पूर्णिमा कहते हैं । जिस तिथि को पूर्ण चन्द्रमा का उदय होता है, वह पूर्णमासी देवताओं को प्रिय है तथा जिस तिथि को चन्द्रमा लुप्त हो जाते हैं, उसे विद्वानों ने अमावस्या कहा है । अग्निष्वात्त आदि पितरों को वह अधिक प्रिय है।
ये तीस दिन पुण्यकाल से संयुक्त होते हैं। इनमें जो विशेषता है उसे आप लोग सुनें।
योगों में व्यतीपात,
नक्षत्रों में श्रवण,
तिथियों में अमावस्या और पूर्णिमा तथा संक्रान्ति - काल - ये सब दान - कर्म में पवित्र माने गये है ।
भगवान् शंकर को अष्टमी प्रिय है । गणेशजी को चतुर्थी, नागराज को पंचमी, कुमार कार्तिकेय को षष्ठी , सूर्यदेव को सप्तमी, दुर्गाजी को नवमी, ब्रह्माजीको दशमी, रुद्रदेव को एकादशी, भगवान् विष्णु को द्वादशी, कामदेव को त्रयोदशी तथा भगवान् शंकर को चतुर्दशी विशेष प्रिय है ।
ॐ नमः शिवाय
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